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Showing posts from September, 2010

यह कब हुए किसी के ?

सफेद पोशाक का चोला ओड़ कर शैतान घुमे हैं आंगन में अशुर भी आज शर्मसार है इन्सान की ऐसी हरकतों से जिधर देखो लहू के प्यासे ...लम्बी तिलक लम्बी दाड़ी सिर पर टोपी और कुछ अस्त्रधारी बेरोजगार सब घुमने वाले पड़ गए हैं इनके पाले कौन जाने इनके मन के जाले न राम जाने न रहीम जाने किसी का कहना कभी न माने अब क्या हो ऊपरवाला जाने सावधान रहना इनसे मुंह मत लगना इनके यह कब हुए किसी के ?

नज़रुल को आना पड़ेगा फिर से बिष पान करने के लिए , अग्निसेतु बजाने के लिए.

बंगाल. उड़ीसा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्य में कवि नज़रुल आज भी याद किये जाये हैं. एक बंगला गीत है जिसे भूपेंद्र हजारिका ने गाया है " सबार हृदये रबिन्द्रनाथ , चेतोनाय ते नज़रुल ....." यह एक सच है विद्रोही कवि नज़रुल आज भी बंगाल की भी भूमि पर पूजे जाते हैं . किन्तु हिंदी के लेखकों ने नज़रुल का बहुत कम उल्लेख किया है अपने लेखन में जबकि रवि ठाकुर स्वयं कवि नज़रुल के प्रशंसक थे . हिंदी में पहली बार नज़रुल पर काम किया श्री विष्णुचंद्र शर्मा जी ने . उन्होंने हिंदी के पाठकों के सामने काज़ी नज़रुल की जीवनी प्रस्तुत किया "अग्निसेतु" के नाम से. जिन् लोगों को इसे पढने का अवसर मिला उन्होंने इसे अच्छा कहा . बात यहाँ समझ में नही आती कि आखिर मुहं खोलकर बघारने वाले आज के लेखक राजनेता जैसा व्यवहार  किउन करने लगे . वे किउन किसी कवि को छोटा आंकते हैं ? राजा के दरवार में रहकर राजा की आलोचना करना आसान कार्य नही और सबकी बस की बात भी नही . किन्तु काज़ी नज़रुल ने ऐसा करके दिखाया . किन्तु भारत का  इतिहास किसने लिखा ? जिस राजा के शासन काल में इतिहास की रचना की जाती है, उसमें सिर्फ राजा और उनके चमचों

आज़ाद भारत की आधुनिक तस्वीर

किसान तुम फसल उगाओ हम उसे बेचेंगे मुनाफा कमाएंगे हवाई यात्रा करेंगे बच्चों को घुमायेंगे चिंता मत करो तुम्हे - कर्जा हम दिलवायेंगे तुम सिर्फ व्याज भरते रहना जीवनभर यूँ ही मरते रहना अपना काम करते रहना हमारा क्रिकेट देखते रहना किन्तु एक काम करना हमसे कभी रोटी  मत मांगना --तुम्हारा कृषि मंत्री

मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि

मेरी ऐसी औकात कहाँ कि मैं बनायुं मंदिर तुम्हारा मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि मैं तोडू मस्जिद मैं भक्त गरीब तुम्हारा मैं बंदा फकीर तुम्हारा अपना घर मैं अब तक बना न पाया कैसे जलाऊँ बस्ती भूख की आग पेट में जल रही मैं कैसे करूं मस्ती ? तुम्हारे मंदिर - मस्जिद पर मैं कुछ कहूं मेरी कहाँ है ऐसी हस्ती ? छोड़ दिया है यह काम उनपर जिनके लिए है मानव जीवन सस्ती जो आपने सोचा न था कर  रहे हैं बन्दे इतनी मुझमें हिम्मत कहाँ कि कह दूं इन्हें मैं गंदे यदि कहीं है अस्तित्व तुम्हारा मेरे लिए समान है कैसे तुमने यह होने दिया जब तुम्हारे हातों में कमान हैं ? कबीर को अब कहाँ से लाऊं रहीम को मैं कैसे बुलाऊँ नानक को यह भूल गये हैं साधु- मौलबी बन गए हैं कैसे इन्हें मैं समझाऊँ ? तुम्हारे और इनके बीच अब बढ गए हैं फासले इसीलिए बढ गए हैं इनके नापाक हौसले .

तो बचा क्या देश का ?

नमक टाटा का भाजी - तरकारी अम्बानी और मोदी का पानी कोई ओर बेचे तो बचा क्या देश का ? जमीं बेचीं जंगल बेचा रहा क्या देश का ? सामान बिका तुम भी बिके दुकान अब कौन चलाएगा ? इतिहास तुमने बदल दिया भूगोल तुमने बिगाड़ दिया अब बचा क्या पढने को ? जो निकले थे बिद्रोह पर तुमने उनको कुचल दिया अब नई क्रांति लायेगा कौन ? कहाँ से सीखी तुमने यह कला अब हमें बतायेगा कौन ?

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की कुछ कविताएँ

नई खेती मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता मैं कहता हूँ पगले! अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है तो आसमान में धान भी जम सकता है और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा या आसमान में धान जमेगा. ________________________________________________ औरतें इतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया? मैं नहीं जानता लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी, मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा? मैं नहीं जानता लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी और यह मैं नहीं होने दूँगा. ______________________________________ मोहनजोदाड़ो ...और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियाँ रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और बंगाल के जुलाहों की भी या फिर वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य जिसका यही काम होता है कि पहाड़ों पर पठारों पर नदी किनारे सागर तीरे

गुलामी का असर अभी बाकि है

आपने कहीं इतिहास में ऐसा पढा या सुना है क्या कि किसी देश में कोई बड़ी दुर्घटना घटे ओर उसमें  एक ही साथ हजारों लोग मारें जायें और उस घटना के लिए जिम्मेदार व्यक्ति उस देश को छोड़ कर सही सलामत  निकल कर अपने देश अमेरिका पहुँच जाये किन्तु जिस देश में यह घटना घटी उस देश के प्रधानमंत्री को इस बारे में कुछ भी पता न हो ऐसा हो सकता है क्या ?  यदि आप भी मेरी तरह यह मानते हैं कि यह कतई संभव नही तो यह किस तरह से संभव हो सकता है कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता और  वकील माननीय श्री अभिषेक मनु सिंग्वी जी आपको समझा सकते हैं कि यह कैसे संभव हो सकता है . अभिषेक जी वकील भी हैं और मनोवैज्ञानिक भी उनसे बढ़िया जवाब और कहाँ मिलेगा ? नेहरु जी के महान भारत में उनके पार्टी के आज के नेताओं के लिए सबकुछ संभव है , कुछ भी असंभव नही . भारत के प्रथम युवा प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी जी उस समय भारत के प्रधान मंत्री थे और अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के  मुख्यमंत्री  जब भोपाल गैस कांड हुआ था . इउनिओन कार्बाइड के मालिक और हजारों मासूमों के कातिल आन्देर्सन  भारत से कैसे सही सलामत भाग गया ? वह इसीलिए भाग पाया किउंकि उस