Posts

Showing posts from January, 2016

मौसम ऐसे ही बदलता है

सुखद यह है कि कल-आज कमी दर्ज किया है मैंने, मेरे लिए तुम्हारी बेचैनी में मैं मान ले रहा हूँ कि तुम्हें भी अब अहसास होने लगा है अपनी नादानियों का | .... मौसम ऐसे ही बदलता है .... तुम्हारा कवि ......

लोकतंत्र बीमार है

मिमिक्री मत करना कभी अब जेलों में अब भी जगह बहुत है पुलिस दुरुस्त हैं बस, बीमार है लोकतंत्र ! पुस्तक मेले में आके देखो बाबाओं के स्टाल पर दस रुपये की मोटी किताब है सेवक-सेविकाएँ एकदम चुस्त हैं बाउंसर सजग है बस लोकतंत्र बीमार है पता नहीं क्या बकता है ये साला गायेन पागल है ! - तुम्हारा कवि क्या लिखता है मत पढ़ो, सब कचरा है | उनका पढ़ो सब मौलिक, महान हैं |

मेरे दर्द को तुमने कविता बना दिया

दरअसल मैंने दर्द लिखा हर बार जिसे तुमने मान लिया कविता | मेरे दर्द को  तुमने कविता बना दिया ! -तुम्हारा कवि