सरकार की पोल खोल दी
२९ जून २०१० को माओवादियों ने फिर हमला कर केंद्रीय पुलिस बल के २७ जवानों को शहीद कर डाला . इस हमले ने जहाँ मओवादिओं की पैशाचिक इरादों का पर्दाफास किया वंही सरकार की पोल खोल दी . माना जाता है कि नक्सलवादीओं की लड़ाई उस शोषण केन्द्रित व्यवस्था से है , जिसके कारण पिछड़े , आदिवासी तथा दलित समुदाय के लोगों के अधिकार नही मिल पा रहे हैं. माओवादियों के समर्थकों का कहना है कि नक्सलवादी बड़े संवेदनशील लोग हैं . उन्होंने केवल अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए हथियार उठ रखा है. व्यर्थ का खून खराबा उनका मकसद नही . वे हत्यारे नही . यदि हम माओवादियों द्वारा किये गए पिछले कुछ हमलों को ध्यान से देखें तो ये दावा निराधार लगते हैं .इन हमलों ने उनकी संवेदनशीलता की सारी पोल खोल दी है . ताजे घटना क्रम में उनके क्रूर और भयानक चेहरे का परिचय दे दिया है. इस हमले में नक्सलियों ने जिस निर्दयता से जवानों की हत्याएं की हैं वह सावित करता है कि वर्तमान नक्सली संघर्ष केबल एक राजनैतिक और अताक्वादी घटना है .इस हमले ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा भारतीय जवानों की अमानवीय याद ताज़ा कर दिया है ...