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मैं बोका निकला इस बार भी

उठते देखा   ढलते देखा   अपना रुख बदलते देखा   लड़ते देखा   फिर मैदान से भागते देखा   तुम्हें योद्धा कहूँ   या रणछोड़ .. चलो .... कुछ नही कहना   यहाँ मौजूद हैं   वीरों के वीर   जिनके पास हैं नैतिकता , ईमानदारी , सत्य के प्रवचन   सिर्फ औरों के लिए   गिरगिट ने पहचान लिया था इन्हें   मुझसे पहले   अच्छा .... अब ठीक है   मैं बोका निकला इस बार भी

पतझड़ में

आदमी कब मरता है किसी मुल्क में  वहाँ एक नागरिक मरता है हर बार मृत्यु के साथ चरित्र नही मरा करता केवल मिटता है एक देह हर बार पतझड़ में पेड़ कहाँ सूखते हैं बस झड़ जाते है पत्ते हर बार