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Showing posts from 2012

दो बांग्ला कविताएँ

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1.তবুও থাকি আমি নিশব্দ  ---------------------------- ভালো লাগে তোমার কথা ভোরের পাখিদের কন্ঠের  মত মিষ্টি বাতাস শান্ত জল সূর্যের আলো ভালো লাগে আমার বেদনার অনুভব তবু থাকি নিশব্দ ব্যাকুল মনে ওঠে ঝড় মেঘের গর্জনা হয় ... তবুও থাকি আমি নিশব্দ 2. শিউলি ফুল   ------------ কুয়াসায় ভেজা রাত  শিউলি ফুলের গন্ধ  শিশিরে ভিজে যায় পাতা  চক -চক করে চাঁদের আলোতে  মাটিতে পড়ে টপ-টপ  পাহারা দেয়  নিশব্দ রাত  ভোর -ভোরে ছুটে আসে পাড়ার মেয়েরা মাটি তে পড়ে থাকে শিউলি ফুল -নিত্যানন্দ গায়েন

ওরা পড়তে পারেনা ভাঙ্গা অক্ষর ....

কি যে লিখি  আমার লেখার তো নেই কোনো শেষ  আমি লিখব  থাকবে লেখা  সুধু জীবন হবে শেষ  আমার দেশে আমি হলাম পর ওরা সবাই জানে গল্প আমার মুখ দেখে পড়ে জীবন আমার আমার ভিতরে যে ভাঙ্গাচড়া ঘর তার দালানে পড়ে আছে আমার স্বপ্ন দেহ ওরা পড়তে পারেনা ভাঙ্গা অক্ষর .... -নিত্যানন্দ গায়েন

मैंने जीवन जलाकर रौशन किया तुम्हारे देवता का घर ....

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बहुत मंहगा है  दीये का तेल  और मेरे हाथ हैं खाली  मैंने जीवन जलाकर रौशन किया  तुम्हारे देवता का घर ....

खोजता हूँ कुछ और आग

तपते फागुन में  जैसे जलता है आरण्य  झरने लगता है  गल -गल के सूरज  तृष्णा में व्याकुल पृथ्वी  ठीक उसी तरह जलता है  एक आग कहीं  मेरे भीतर  हर मौसम  तब मैं पानी नही खोजता हूँ कुछ और आग ताकि जी भरकर जल जाऊं अपने गमों के साथ ...

कई बार झुलसा है

खामोश है शहर मेरा  सहमे हुए बच्चे की तरह  कई बार झुलसा है  दंगों की आग में  आजकल  जी रहा है  एक अपाहिज की तरह

अलग हैं हमारी मुस्कानों की छवि

तुम्हारे अनुभवों में शामिल नही है मेरे अनुभव अंतर है हमारी सहनशीलता के बीच पीड़ा के बीच अलग हैं हमारी मुस्कानों की छवि एक मुस्कुराता है दर्द में और एक खुशी में यहीं से अंतर आता है हमारी सोच में अपनी सोच के साथ हम ठीक हैं अलग -अलग

তুমি কি জানতে ..?

অনেক দিন হলো  কথা নেই কোনো  তুমি কি জানতে  আমার মনের কথা মানতে  বলতে পারিনি  করি তোমারে প্রেম  তাই হারিয়েছি  বিশাস  ঐকান্ত আপন মেনেছি  তোমারে তোমার নাম নিয়ে ফেলবো আমি শেষ নিশ্বাস ..

आओ मनाएं ईद हम लगाकर गले एक -दूजे को

आओ मनाएं ईद हम  लगा के गले  एक -दूजे को  दुआ ये करें इस ईद में  रो न दें चाँद  फिर न कर बैठें  हरकत कोई  कि, मिला न पाए आँख  एक -दूजे से .... आओ सजाएं हम मिलकर  अपने वतन के चमन को इस तरह से कि, उजड़ न पाए कोई ........... आओ मनाएं ईद हम लगाकर गले एक -दूजे को

तुम भी बेचैन हो शायद

हर बार खोलता हूँ द्वार  कि , हो जाये तुम्हारा दीदार  काले मेघों का जमघट  हटा नही अभी  तुम भी बेचैन हो शायद  ओ  चाँद ....

शामिल नही एक भी शहीद

इनके पास है  देश भक्तों की एक लम्बी सूची  शामिल   नही   एक भी  शहीद ये सभी ... जमीन ,इमारतें , नदी तालाब  को ही मानते हैं देश  इनके देश में नही रहते  हम -तुम जैसे  आम लोग ..

'युवराज ' देने की परम्परा रही है हमारी

मत करो हमारा विरोध  हमें सहो, सहते -सहते मरो  आखिर लोकतंत्र में  'युवराज ' देने की परम्परा रही है हमारी  अरे ...अक्ल के अंधे  धन कभी काला नही होता  यदि , होता  तेरे पास भी क्यों होता ...? सोचता हूँ तुम्हारे विरुद्ध हम भी खड़े कर दें कुछ बाबा जिनका नारा हो "उस बाबा को हटाओ , हमें बचाओ "| देखो , तुम भी खिलाड़ी और हम भी पर फर्क है हमारे अनुभवों में हम शुरू से हैं मैदान में तुम अभी उतरे हो तुम से पहले भी कुछ आये थे देने हमें चुनौती अपने दामन में लगे धब्बों को छुपाकर अब हमारे साथ हैं ... अच्छा होता यदि खेल पाते कुछ और अभ्यास मैच फाइनल से पहले ..

रंजना भाटिया जी द्वारा मेरी किताब की समीक्षा

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रंजना भाटिया  दो दिन पहले नित्‍यानंद गायेन की किताब अपने हिस्से का प्रेम मिली ..रविवार का दिन उसी को पढ़ते हुए गया ..पढ़ते पढ़ते एक अजीब सा एहसास हुआ कि हिंदी कविता की कमांड अब युवा वर्ग के हाथ में महफूज है ....देश की फ़िक्र ,समाज की फ़िक्र ,और आज के समाज की वास्तविकता की तस्वीर है इस काव्य संग्रह में ..अपने पर्यावरण के प्रति लगाव और चिंता आपकी पहली दूसरी कविता में ही व्यक्त हो जाती है ..सीखना चाहता हूँ मित्रता /पालतू पशुओं से/क्यों कि वे स्वार्थ के लिए कभी धोखा नहीं देते |.कितना बड़ा सच है इन पंक्तियों में जो आज की राजनिति और आज के वक़्त को ब्यान करता है|हाथी सिर्फ आगे चित्रों में दिखेगा क्यों कि जंगल ही नहीं बचेंगे आने वाले वक़्त में ..डरा देता है यह मासूम सी कविता का सवाल ..और यह तो और भयवाह है कि बाजार से लायेंगे साँसे और हवा बिकेगी बाजार में ...आने वाले वक़्त की तस्वीर आँखों में डर पैदा कर देती है ..साथ ही यह एहसास भी करवाती है कि आज का युवा सजग है तो शायद कहीं कुछ हालात में सुधार संभव हैं .. समाज किसी भी युग का आईना होता है ..और उस पर लिखे जाना वाला साहित्य उसकी परछाई

उन्हें माफ़ है सब

वे , जो लूट रहे हैं बोल कर झूठ उन्हें माफ़ है सब| जिन्होंने बड़ा ली है दाढ़ी , मूछ और केश गेरुआ वस्त्र पहनकर बन वैठे हैं बाबा उन्हें माफ़ है सब | वे , जो पहन कर टोपी हमें पहना रहे हैं टोपी और मंच पर चढ़ कर पहनते हैं नोटों की माला और होते गए मालामाल जिनके भीतर का गीदड़ पहने हुए हैं , आदमी की खाल उन्हें माफ़ है सब जो लगवाते हैं आग उजाड़ देते हैं पूरी बस्ती ताकत के जोर पर करते हैं मस्ती वो , जो बीच सड़क पर उतार लेते हैं .. आबरू एक नारी की रौंद कर चल देते हैं सोते हुए बेघरों को उन्हें माफ़ है सब जो फेंक जाते हैं हिंसा की  ढेर परंपरा के नाम पर  सुना देते हैं प्रेमिओं को ,  मौत का फरमान उन्हें माफ़ है सब ये वही लोग है जो जिम्मेदार है किसानों की  मौत के लिए ये वही लोग हैं जो छीन रहे हैं हमसे जल ,जंगल और हमारी जमीन इन्हें सब माफ़ है ये मेरा देश है ......

सजदा, कुछ इस तरह से

करो धरती पर  सजदा, कुछ इस तरह से  कि , गूंजे आसमां... और उतर आये मसीहा  जमीं पर  पूछने तुम्हारी ख्वाइश वैसे तो मालूम है  आता नही कोई अपना भी  पूछने एक बूँद पानी के लिए  बस गिनते हैं  हर साँस को  अंत के लिए  फिर भी बडो का कहा याद है  बड़ी शक्ति है दुआयों में  तुम्हे आश्वस्त कर देना चाहता हूँ मैं नही चाहता कुछ भी  बस हट जाये ये उदासी के बादल  और मिल जाये बिछड़े हुए लोग  उस असहाय अंधी बूढी माँ का बेटा ....