सजदा, कुछ इस तरह से

करो धरती पर 
सजदा, कुछ इस तरह से 
कि , गूंजे आसमां...
और उतर आये मसीहा 
जमीं पर 
पूछने तुम्हारी ख्वाइश


वैसे तो मालूम है 
आता नही कोई अपना भी 
पूछने एक बूँद पानी के लिए 
बस गिनते हैं 
हर साँस को 
अंत के लिए 
फिर भी बडो का कहा याद है 
बड़ी शक्ति है दुआयों में 


तुम्हे आश्वस्त कर देना चाहता हूँ
मैं नही चाहता कुछ भी 
बस हट जाये ये उदासी के बादल 
और मिल जाये बिछड़े हुए लोग 
उस असहाय अंधी बूढी माँ का बेटा ....

Comments

  1. जीवन की आस.एक शसक्त रचना ---बधाई

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    1. धन्यवाद रविशंकर जी

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  2. Replies
    1. बहुत शुक्रिया आपका शिवम जी

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  3. बहुत सुन्दर.........

    अनु

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    1. बहुत शुक्रिया अनु जी

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