सजदा, कुछ इस तरह से
करो धरती पर
सजदा, कुछ इस तरह से
कि , गूंजे आसमां...
और उतर आये मसीहा
जमीं पर
पूछने तुम्हारी ख्वाइश
वैसे तो मालूम है
आता नही कोई अपना भी
पूछने एक बूँद पानी के लिए
बस गिनते हैं
हर साँस को
अंत के लिए
फिर भी बडो का कहा याद है
बड़ी शक्ति है दुआयों में
तुम्हे आश्वस्त कर देना चाहता हूँ
मैं नही चाहता कुछ भी
बस हट जाये ये उदासी के बादल
और मिल जाये बिछड़े हुए लोग
उस असहाय अंधी बूढी माँ का बेटा ....
सजदा, कुछ इस तरह से
कि , गूंजे आसमां...
और उतर आये मसीहा
जमीं पर
पूछने तुम्हारी ख्वाइश
वैसे तो मालूम है
आता नही कोई अपना भी
पूछने एक बूँद पानी के लिए
बस गिनते हैं
हर साँस को
अंत के लिए
फिर भी बडो का कहा याद है
बड़ी शक्ति है दुआयों में
तुम्हे आश्वस्त कर देना चाहता हूँ
मैं नही चाहता कुछ भी
बस हट जाये ये उदासी के बादल
और मिल जाये बिछड़े हुए लोग
उस असहाय अंधी बूढी माँ का बेटा ....
जीवन की आस.एक शसक्त रचना ---बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद रविशंकर जी
Deleteवाह ...
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है प्लस ३७५ कहीं माइनस न कर दे ... सावधान - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत शुक्रिया आपका शिवम जी
Deleteबहुत सुन्दर.........
ReplyDeleteअनु
बहुत शुक्रिया अनु जी
Deleteबहुत ख़ूब...
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