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घायल हुए हम और तुम

सिंगुर हो या नंदीग्राम या कहीं और  कहीं नही लड़ी गई तुम्हारी - हमारी लड़ाई हर जगह उन्होंने लड़ी सिर्फ अपनी साख की लड़ाई वोट की लड़ाई घायल हुए हम और तुम और जीत हुई उनकी क्या तुम इसे अपनी लड़ाई मानते हो अपनी जीत मानते हो ? चुनावों के बाद दिखेगा इनका असली चेहरा वे फिर पैंतरा बदलेंगे हमें फिर लड़ना पड़ेगा अपनी जमीन के लिए हमारे नाम पर लड़ी गई हर लड़ाई  उनकी खुद की ज़मीन  बचाने की लड़ाई थी  और -- हर लड़ाई में  उनकी जमीन बनती गई  और हम ज़मीन हारते गए  हम वहीं रह गये  जहाँ से शुरू किया था हमने  यह जंग  बानर कब गिने गये  योद्धाओं में  लंका की लड़ाई में  जीत तो केवल राम की हुई //

अँधेरे में

गहराई रात की  अँधेरे में  टिमटिमाते तारों को देखता हूँ  और याद करता हूँ  काल कोठरी में कैद  'दाराशिकोह ' को  'नजरुल ' को  भगत सिंह  और राजगुरु को  और मेरे युग के  विनायक सेन को  कहीं किसी उपवन में  गा रहा है  नज़रुल का बुलबुल  विरह गीत  तभी एका - एक  बड़ी -बड़ी आँखों के पीछे से  विद्रोही कवि का प्रेमी हलकी मुस्कान लिए  खड़े हैं -- फिर विरक्त होकर  उठा लेते हैं  रणभेरी  अपने हाथों में  मैं बतियाने लगता हूँ  कि-- हे महाप्राण  मैं आपके साथ जाना चाहता हूँ  युद्ध के मैदान पर  फिर सुनने लगता हूँ  बहादुरशाह जफ़र की ग़ज़ल  " जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ ......." दूर शान्तिनिकेतन से  गुरुदेव कह रहें हैं - 'जोदि तोर डाक सुने केऊ ना आसे, तबे  एकला चलो रे ' और फिर  वेदना भरे दिल से  बुदबुदाते हैं गाँधी जी - हे राम -हे राम  एक असहाय भक्त की तरह //