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Showing posts from 2010

धूप पिघल रहा है

धूप पिघल रही  है और -- आदमी सूख रहा है जलकर राजा लूट रहा मंत्री सो रहा है वकील जाग रहे हैं विपक्ष नाच रहा है सड़क पर कुत्ते भौंक  रहे  हैं "मैं "  नासमझ  दर्शक की तरह सब कुछ खामोश देख रहा हूं

ख़ामोशी की मज़बूरी

१६ नवंबर को सर्वच्य न्यायालय ने दूरसंचार घोटाले मामले की सुनवाई करते हुए देश के प्रधानमंत्री से पूछा कि वे इस मामले में १६ महीने तक खामोश किउन रहे ?  मनमोहन सिंह देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए  जिनसे न्यायालय ने यह सवाल किया है . यह उनके लिए  शायद गौरव कि बात  है . प्रश्न यह है कि प्रधानमंत्री बनाने के बाद से सरदार मनमोहन सिंह जी कितनी बार कुछ बोले हैं ?  और जब - जब उन्होंने  कुछ बोला है  वह उनकी अपनी बोली थी क्या ?  हस्थिनापुर के चक्रवर्ती सम्राट धृतराष्ट्र  इतने मजबूर थे कि अपने कूल वधु  द्रौपदी  के वस्त्र हरण के समय भी चुप रहे . पुत्र प्रेम और सत्ता पर बने रहने की लालसा ने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर किया था . गंगा पुत्र भीष्म इतने मजबूर थे कि न चाहते हुए भी उन्हें हमेशा कपटी कौरवों का साथ देना पड़ा विदुर और धृतराष्ट्र के पिता एक थे किन्तु विदुर की माँ एक दासी थीं . विदुर ने हमेशा विवेकपूर्ण सलाह दिये  किन्तु  सत्ता पर बने रहने के लिए  महाराज ने उन पर  कभी ईमानदारी से अमल नही किया .    वर्तमान परिपेक्ष में भी हालात वही है . राम नाम जपने वाली पार्टी के लिए यह एक अच्छा मौका था किन्तु

साला गरीबी है कि समाप्त ही नही हो रही .

इतिहास के पुस्तकों के अनुसार भारत सन १९४७ को आज़ाद हो गया था . किन्तु प्रश्न यह उठता है कि किसी भी देश को जब गुलामी आज़ादी से आज़ादी मिलती है तो वह देश नई ऊर्जा के साथ आगे बढने की कोशिश करता है और अपने सारे संसाधनों का उपयोग देश के विकास ... के लिए करता है .किन्तु यहाँ एक दम बिपरीत मामला है . यहाँ देश विकास नही नेता और पार्टी विकास कार्यक्रम चलाया गया और सफलता मिलती गई . बहन जी अरब -खरबपति बन गई , लालू ने पशुओं का हिस्सा कहा  लिया , कुछ पूर्व और भूतपूर्व नेतायों ने शहीदों का कफ़न तक का पैसा कहा लिया. इस तरह से यह देश आज चाँद पर पहुँच गया . ६ दशक बाद भी आज चुनावी मुद्दा यह होता है कि हमें वोट दो हम गरीबी मिटायेंगे माने गरीबों को मिटायेंगे . और लगातार मिटाते आरहें हैं . यह साला गरीबी है कि समाप्त ही नही हो रही .

जय की जय जयकार

गुलज़ार लिखते हैं जय हो किन्तु किसकी जय हो रहमान करें ... जय की जय जयकार दिल्ली के मंच जय हो की धून पर नाचती है शीला गुलज़ार की जय हो को यह कैसा शीला मिला दिल्ली जल मग्न है कलमाड़ी, शीला, मनमोहन, सोनिया आदि -आदि सब एक संग है यह कैसा बदरंग है दिल्ली का कुत्ता कितना भग्यवान है खेल गावं के अपार्टमेन्ट में आजकल सो रहा है उसी दिल्ली में  आदमी सड़क पर और सडक पानी में डूबा हुआ है .

भाग्य तुम्हारा लिख रहा है दिल्ली में बैठे नेता

भाग्य तुम्हारा क्या बतायेगा पिंजरे में बंद तोता भाग्य तुम्हारा लिख रहा है दिल्ली में बैठे नेता

लूट का पदक जीतते रहो.

अब लगता है राजघाट छोड़ कर बापू को फिर से  आना पड़ेगा एक और असहयोग आन्दोलन के लिए लातों के भूत बातों से नही मानते सच है ... गाँधी ने देखा तुम्हे करीब से परख कर दुखी होकर चले गये तुम्हे छोड़कर तुम्हे शर्म न आई अब कहाँ है पीर पराई .यूंही देश को लूटते रहो सबको पीछे छोड़ते रहो खेल न सही लूट का पदक जीतते रहो.

समन्दर की किस्म्मत अच्छी है

समन्दर की किस्म्मत अच्छी है कि उसके दामन में सिर्फ पानी नही नमक भी है यदि - समंदर में सिर्फ पानी होता ... सुमंदर कबका सुख चुका होता नेता -दलाल मिलकर उसका वस्त्र हरण कब का कर चुके होते विशाल समन्दर का पानी किसी छोटे से बोतल में कैद आज बाज़ार में होता.

यह कब हुए किसी के ?

सफेद पोशाक का चोला ओड़ कर शैतान घुमे हैं आंगन में अशुर भी आज शर्मसार है इन्सान की ऐसी हरकतों से जिधर देखो लहू के प्यासे ...लम्बी तिलक लम्बी दाड़ी सिर पर टोपी और कुछ अस्त्रधारी बेरोजगार सब घुमने वाले पड़ गए हैं इनके पाले कौन जाने इनके मन के जाले न राम जाने न रहीम जाने किसी का कहना कभी न माने अब क्या हो ऊपरवाला जाने सावधान रहना इनसे मुंह मत लगना इनके यह कब हुए किसी के ?

नज़रुल को आना पड़ेगा फिर से बिष पान करने के लिए , अग्निसेतु बजाने के लिए.

बंगाल. उड़ीसा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्य में कवि नज़रुल आज भी याद किये जाये हैं. एक बंगला गीत है जिसे भूपेंद्र हजारिका ने गाया है " सबार हृदये रबिन्द्रनाथ , चेतोनाय ते नज़रुल ....." यह एक सच है विद्रोही कवि नज़रुल आज भी बंगाल की भी भूमि पर पूजे जाते हैं . किन्तु हिंदी के लेखकों ने नज़रुल का बहुत कम उल्लेख किया है अपने लेखन में जबकि रवि ठाकुर स्वयं कवि नज़रुल के प्रशंसक थे . हिंदी में पहली बार नज़रुल पर काम किया श्री विष्णुचंद्र शर्मा जी ने . उन्होंने हिंदी के पाठकों के सामने काज़ी नज़रुल की जीवनी प्रस्तुत किया "अग्निसेतु" के नाम से. जिन् लोगों को इसे पढने का अवसर मिला उन्होंने इसे अच्छा कहा . बात यहाँ समझ में नही आती कि आखिर मुहं खोलकर बघारने वाले आज के लेखक राजनेता जैसा व्यवहार  किउन करने लगे . वे किउन किसी कवि को छोटा आंकते हैं ? राजा के दरवार में रहकर राजा की आलोचना करना आसान कार्य नही और सबकी बस की बात भी नही . किन्तु काज़ी नज़रुल ने ऐसा करके दिखाया . किन्तु भारत का  इतिहास किसने लिखा ? जिस राजा के शासन काल में इतिहास की रचना की जाती है, उसमें सिर्फ राजा और उनके चमचों

आज़ाद भारत की आधुनिक तस्वीर

किसान तुम फसल उगाओ हम उसे बेचेंगे मुनाफा कमाएंगे हवाई यात्रा करेंगे बच्चों को घुमायेंगे चिंता मत करो तुम्हे - कर्जा हम दिलवायेंगे तुम सिर्फ व्याज भरते रहना जीवनभर यूँ ही मरते रहना अपना काम करते रहना हमारा क्रिकेट देखते रहना किन्तु एक काम करना हमसे कभी रोटी  मत मांगना --तुम्हारा कृषि मंत्री

मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि

मेरी ऐसी औकात कहाँ कि मैं बनायुं मंदिर तुम्हारा मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि मैं तोडू मस्जिद मैं भक्त गरीब तुम्हारा मैं बंदा फकीर तुम्हारा अपना घर मैं अब तक बना न पाया कैसे जलाऊँ बस्ती भूख की आग पेट में जल रही मैं कैसे करूं मस्ती ? तुम्हारे मंदिर - मस्जिद पर मैं कुछ कहूं मेरी कहाँ है ऐसी हस्ती ? छोड़ दिया है यह काम उनपर जिनके लिए है मानव जीवन सस्ती जो आपने सोचा न था कर  रहे हैं बन्दे इतनी मुझमें हिम्मत कहाँ कि कह दूं इन्हें मैं गंदे यदि कहीं है अस्तित्व तुम्हारा मेरे लिए समान है कैसे तुमने यह होने दिया जब तुम्हारे हातों में कमान हैं ? कबीर को अब कहाँ से लाऊं रहीम को मैं कैसे बुलाऊँ नानक को यह भूल गये हैं साधु- मौलबी बन गए हैं कैसे इन्हें मैं समझाऊँ ? तुम्हारे और इनके बीच अब बढ गए हैं फासले इसीलिए बढ गए हैं इनके नापाक हौसले .

तो बचा क्या देश का ?

नमक टाटा का भाजी - तरकारी अम्बानी और मोदी का पानी कोई ओर बेचे तो बचा क्या देश का ? जमीं बेचीं जंगल बेचा रहा क्या देश का ? सामान बिका तुम भी बिके दुकान अब कौन चलाएगा ? इतिहास तुमने बदल दिया भूगोल तुमने बिगाड़ दिया अब बचा क्या पढने को ? जो निकले थे बिद्रोह पर तुमने उनको कुचल दिया अब नई क्रांति लायेगा कौन ? कहाँ से सीखी तुमने यह कला अब हमें बतायेगा कौन ?

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' की कुछ कविताएँ

नई खेती मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता मैं कहता हूँ पगले! अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है तो आसमान में धान भी जम सकता है और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा या आसमान में धान जमेगा. ________________________________________________ औरतें इतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया? मैं नहीं जानता लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी, मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा? मैं नहीं जानता लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी और यह मैं नहीं होने दूँगा. ______________________________________ मोहनजोदाड़ो ...और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियाँ रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और बंगाल के जुलाहों की भी या फिर वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य जिसका यही काम होता है कि पहाड़ों पर पठारों पर नदी किनारे सागर तीरे

गुलामी का असर अभी बाकि है

आपने कहीं इतिहास में ऐसा पढा या सुना है क्या कि किसी देश में कोई बड़ी दुर्घटना घटे ओर उसमें  एक ही साथ हजारों लोग मारें जायें और उस घटना के लिए जिम्मेदार व्यक्ति उस देश को छोड़ कर सही सलामत  निकल कर अपने देश अमेरिका पहुँच जाये किन्तु जिस देश में यह घटना घटी उस देश के प्रधानमंत्री को इस बारे में कुछ भी पता न हो ऐसा हो सकता है क्या ?  यदि आप भी मेरी तरह यह मानते हैं कि यह कतई संभव नही तो यह किस तरह से संभव हो सकता है कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता और  वकील माननीय श्री अभिषेक मनु सिंग्वी जी आपको समझा सकते हैं कि यह कैसे संभव हो सकता है . अभिषेक जी वकील भी हैं और मनोवैज्ञानिक भी उनसे बढ़िया जवाब और कहाँ मिलेगा ? नेहरु जी के महान भारत में उनके पार्टी के आज के नेताओं के लिए सबकुछ संभव है , कुछ भी असंभव नही . भारत के प्रथम युवा प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी जी उस समय भारत के प्रधान मंत्री थे और अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के  मुख्यमंत्री  जब भोपाल गैस कांड हुआ था . इउनिओन कार्बाइड के मालिक और हजारों मासूमों के कातिल आन्देर्सन  भारत से कैसे सही सलामत भाग गया ? वह इसीलिए भाग पाया किउंकि उस

कबतक लूटते रहेंगे ये हमें ?

सन 1947 गोरे अँगरेज़ भारत छोड़कर प्रतक्ष रूप से चले गए थे किन्तु वे आज भी अप्रतक्ष रूप से भारत पर आज भी राज कर रहे हैं . तब के अंग्रेज ब्रिट्रेन से थे , आज अंग्रेजों का फैलाब कोई रूपों में हैं . भोपाल गैस हत्या कांड के आरोपी के रूप में , राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सेदारों के रूप में सुरेश कलमाड़ी के साथी बनकर आज भी देश का धन लूटने में लगे हैं. दरअसल गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद से ही उनके चमचे और दलाल प्रबृति के देशी काले अंग्रेजों ने देश की सत्ता कब्जाने की होड़ शुरु कर दिया था और आज  देश पर उनका पूर्णरूप से कब्ज़ा है . जी भर कर लूट रहे हैं , कोई पूछने  वाला नही और यदि पूछा जाता है तो कोई जबाव देही नही . कबतक लूटते रहेंगे ये हमें ? सवाल अनेक हैं किन्तु उत्तर कहाँ मिलेगा यह नही पता हमें . आज घर के दुश्मनों ने ही घर पर अधिकार जमा लिया है. जब हमारे अपने ही हमनें लूटने लगे तो शिकायत किस्से करें हम ? इस साम्राज्यवाद को आप क्या नाम देंगे ? .

सरकार मूक किउन है ?

  २ अगस्त  को   रोज की तरह टी.वी. अनेक समाचार थे. रास्ट्रमंडल खेलो में  कलमाड़ी और कांग्रेस का घोटाला , रांची में बजरंगदल और विश्व  हिन्दू  परिसद के गुंडों का युवाओं पर हमला, गुजरात , आदि- आदि . किन्तु  जिस समाचार ने मुझे विचलित  किया वह था I.C.S.I. बोर्ड द्वारा  यह अधिसूचना जारी करना कि उनके विद्यालयों में अब शहीद भगत सिंह को नही पढ पायेंगे  बच्चे किउनी  भगत सिंह देशभक्त नही आतंकवादी थे  .         यह समाचार आज तक पर था . ICSE  ने यदि एसा कहा है तो यह तमाम स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है यह भारत का अपमान है . और यदि यह समाचार सच  है कि हैदराबाद के स्कूलों में अब बच्चो को भगत सिंह के  नही के बारे में नही  बताया  जायेगा  , तो मैं  इससे बोर्ड  को अंग्रेजों का गुलाम और  दलाल  मानता हूं . सरकार की तरफ  से अभी कोई प्रतिक्रिया नही आयी है , और न  ही आने की आशा है, किउंकि इस देश के इतिहास पर तो एक दल और परिवार विशेष का कब्ज़ा है .  हैरानी इस बात पर भी है कि आज जो अपने को शिक्षक कहते हैं उन्होंने भी इस निर्णय का विरोध नही किया . क्या  सब शिक्षक और इतिहासकार दुकानदार और गुलाम है इनमे सच बोलने क

सरकार की पोल खोल दी

२९ जून २०१० को माओवादियों ने फिर हमला कर केंद्रीय पुलिस बल के २७ जवानों को शहीद कर डाला . इस हमले ने जहाँ मओवादिओं की पैशाचिक इरादों का पर्दाफास किया वंही सरकार की पोल खोल दी . माना जाता है कि नक्सलवादीओं की लड़ाई उस शोषण केन्द्रित व्यवस्था से है , जिसके कारण पिछड़े , आदिवासी तथा दलित समुदाय के लोगों के अधिकार नही मिल पा रहे हैं. माओवादियों के समर्थकों का कहना है कि नक्सलवादी बड़े संवेदनशील लोग हैं . उन्होंने केवल अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए हथियार उठ रखा है. व्यर्थ का खून खराबा उनका मकसद नही . वे हत्यारे नही . यदि हम माओवादियों द्वारा किये गए पिछले कुछ हमलों को ध्यान से देखें तो ये दावा निराधार लगते हैं .इन हमलों ने उनकी संवेदनशीलता की सारी पोल खोल दी है . ताजे घटना क्रम में उनके क्रूर और भयानक चेहरे का परिचय दे दिया है. इस हमले में नक्सलियों ने जिस निर्दयता से जवानों की हत्याएं की हैं वह सावित  करता है कि वर्तमान नक्सली संघर्ष केबल एक राजनैतिक और अताक्वादी घटना है .इस हमले ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा भारतीय जवानों की अमानवीय याद ताज़ा कर दिया है . यदि माओवादिय

भुखमरी गांव

केतु यमवती भैंस का एक लौता बछड़ा था . केतु के जन्म के पहले से ही यमवती भैंसी को उसकी पढाई-लिखाई और भविष्य की चिंता होने लगी थी . यमवती का पति और केतु का बाप कालू बड़ा ही लापरवाह और आवारा किस्म का भैंस था यमवती और कालू पहली वार भुखमरी गांव के अमीर चंद के सूखे खेत में मिले थे . दोनों वहां चारा खाने की आस में आये थे . फिर क्या नजरें मिली , दिल धड़का और केतु का जन्म . उधर केतु का जन्म और महंगाई अपने शिखर पर .इन्सान से लेकर जानवरों की रोजमर्या की वस्तुएं आम आदमी और जानवरों के पंहुंच के बाहर थी . यह तो गनीमत हुआ कि केतु बछड़ा , उसकी माँ यमवती और बाप आवारा कालू भैंस कोई भी साबुन ,तेल और गोरे होने का क्रीम का दुरोप्रोयोग नहीं नहीं करता था . वे कीचड़ वाले पानी में नहाते थे . केतु के जन्म के बाद से ही यमवती दूध देने लगी थी . यह केतु और यमवती के लिए एक सौभाग्य था . किउंकि भुखमरी गांव में सिर्फ अमीर चंद ही एक मात्र ऐसा व्यक्ति था जो किसी को सहारा देने में सक्षम था . उसने यमवती को पाल लिया था ,और उसका दूध बेच कर मुनाफा कमाता था . बदले में उनको सुखी घांस और एक तबेला मिला था खाने और सर छुपाने के लिए

बंटवारा

वर्तमान भारत में सबको अपने लिए एक राज्य चाहिए . समस्या राज्य लेने या देने में नहीं , अपितु समस्या यह है कि राज्य क मांग करने वाले जिन मुद्दों के आधार पर नए राज्य कि मांग कर रहे हैं , क्या वे उस नए राज्य को वह सब कुछ दे पायेंगे जो पहले के लोग नहीं दे पाए ? और इसकी गारंटी क्या है? यदि नए राज्य कि मांग करने वाले अपनी कही हुई वादों को पूरी करने की लिखित गारंटी देने को तैयार हो तो उन्हें तुरंत नए राज्य दे देने चाहिए . किन्तु मेरा यह मानना है कि यदि यह लोग अपने वादे पूरे नहीं करते तो उसके लिए उन्हें क्या सजा मिलेगी यह भी तय होनी चाहिए . आज़ादी के बाद से अब तक सभी राजनैतिक दलों ने जनता को सिर्फ मुर्ख बनाकर लूटा है और अपनी तिजोरियां भरी है . गाँधी जी के नाम और उनकी आदर्शों की बात करने वाली पार्टी आर्थिक रूप से असहाय नज़र आती है जब बापू की अंतिम निशानिया दक्षिण अफ्रीका में नीलाम होती है , यह तो भला हो उस व्यापारी विजय मालिया का जिन्होंने बापू की चीजो को भारत के लिए खरीद लिया. कभी नदी का जल तो कभी हिंदी बनाम मराठी कोई न कोई एक मुद्दा हमेशा रहता है इनके पास . गरीबी , कुपोषण , भ्रस्टाचार, अशिक्

नोटों से बनी माला

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जी की एक तस्वीर प्रकाशित है अंग्रेजी दैनिक " द टाइम्स आफ इंडिया " में . इस तस्वीर में उन्हें उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनोऊ में आयोजित एक रैली में हजार रुपए के नोटों से बनी एक बहुत विशाल माला पहनाया जा रहा है . अनुमान लगाया गया कि इस माला में दो से पांच करोड़ रुपए होंगे . जिस देश में लोग आज भी सडको पर सोते हैं , कुपोषण से बच्चे मरते हैं उस देश में नेता प्रथम श्रेणी में हवाई यात्रा करते हैं और करोड़ों रुपए कि नोटों से बनी माला पहनते हैं. जिस जनता के समक्ष यह लोग माला पहनते हैं उनके पास धागा पहनने के लिए भी पैसे नहीं है . देश का कितना पैसा विदेशी बैंकों में है यह कह पाना कठिन काम है, किन्तु देश के नेताओं के पास कितना पैसा है यह हम जानने लगे हैं. यह वही नेता है जो आज़ादी के बाद से भारतीय जनता को मुर्ख बना कर राज भोग का आनंद ले रहे हैं . यह अपने करोड़ों रुपए को देश का रूपया नही मानते . मंदी के दौर का भ्रम फैला कर करोडो रुपए से स्मारकों और पार्कों का निर्माण किया जा रहा है , माला पहना जा रहा है , गुमराह करने के लिए महिला आरक्षण बिल पर जनता को भटकाय

हाथी का चित्र

पिछले शनिवार दो बच्चे आये  मेरे कमरे पर उन्होंने बनाये चित्र तीन हाथियों का माँ हाथी और उसके दो बच्चे . मैंने पूछ लिया हाथी ही क्यों  ? मेरे बच्चों के लिए जवाब  आया.. जब मेरे बच्चे होंगे तब हाथी नहीं  होंगे शायद     तब  जंगल नहीं बचेगा  सिर्फ आदमी ही आदमी होंगे फिर बनाया    हरी- हरी घास  जिस पर हाथी  चल रहे थे . वाह-रे नन्हे  चित्रकार तुम्हारी सोच  को नमन .