दिन की मर्यादा रात ही तो है
अर्चना कुमारी की एक बहुत सुंदर कविता
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नंगापन......
विचारों में हो
या देह की
चुभता है आँखों को
जरुरत भर आवरण
सलज्जता है मर्यादा की
प्रेयसी के चन्द्रमुख पर
धूएँ के छल्ले उड़ाना
शोखी होती होगी
माँ के सामने याद आती है
पैकेट पर लिखी चेतावनी
बड़ी कोशिश की जाती है
कि शराब का भभका बच्चे न पहचाने
कि बच्चे मान ले बुरी चीज है ये भी
कि बना रहे अच्छे बुरे का फर्क
रात-बिरात नींद की गहराईयों में
चूमकर बन्द पलकें
पुरुष हो जाता है मर्यादित पति
बात-बेबात पर खुश होकर
थमाना मोगरे के फूल
अंजुरी में प्रेयसी के
प्रेयस के आह्लाद का संयम है
सरे-बाजार नाच लेना
बारात की शोभा हो सकती है
लेकिन इंसान की नहीं
अनावरण को आधुनिकता कहते लोग
थोड़े कच्चे हैं
कि उद्दण्डता,उच्छृंखलता और स्वच्छन्दता से
कहीं विशेष अर्थ है स्वतंत्रता का
आधुनिक होते-होते
जानवर होने से कहीं भला है
कि तथ्य से भिज्ञ होकर
तत्व का मान रख लें
इंसान हो लें
दिन की मर्यादा रात ही तो है
और धरती का आसमान ॥
- अर्चना कुमारी @ Archana Kumari
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ReplyDeleteधन्यवाद सर । आप जैसे गुणीजनों की छत्रछाया में मेरी लेखनी यूँ ही लिखती रहे । यह स्नेह कलम की प्रेरणा है । यूँ ही अच्छा बुरा बताते रहिए।
ReplyDeleteधन्यवाद सर । आप जैसे गुणीजनों की छत्रछाया में मेरी लेखनी यूँ ही लिखती रहे । यह स्नेह कलम की प्रेरणा है । यूँ ही अच्छा बुरा बताते रहिए।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मेरा भारत महान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletemaryada amaryada ki sundar vyakhya ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक , उत्तम लेखन पर बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसरे-बाजार नाच लेना
ReplyDeleteबारात की शोभा हो सकती है
लेकिन इंसान की नहीं
-----------------वाह बहुत सुंदर
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