उन्हें माफ़ है सब
वे ,
जो लूट रहे हैं
बोल कर झूठ
उन्हें माफ़ है सब|
जिन्होंने बड़ा ली है
दाढ़ी , मूछ
और केश
गेरुआ वस्त्र पहनकर
बन वैठे हैं बाबा
उन्हें माफ़ है सब |
वे , जो
पहन कर टोपी
हमें पहना रहे हैं टोपी
और मंच पर चढ़ कर
पहनते हैं नोटों की माला
और होते गए मालामाल
जिनके भीतर का गीदड़
पहने हुए हैं , आदमी की खाल
उन्हें माफ़ है सब
जो लगवाते हैं आग
उजाड़ देते हैं
पूरी बस्ती
ताकत के जोर पर
करते हैं मस्ती
वो , जो
बीच सड़क पर
उतार लेते हैं ..
आबरू एक नारी की
रौंद कर चल देते हैं
सोते हुए बेघरों को
उन्हें माफ़ है सब
जो फेंक जाते हैं
हिंसा की ढेर
परंपरा के नाम पर
सुना देते हैं प्रेमिओं को ,
मौत का फरमान
उन्हें माफ़ है सब
ये वही लोग है
जो जिम्मेदार है
किसानों की मौत के लिए
ये वही लोग हैं
जो छीन रहे हैं हमसे
जल ,जंगल और
हमारी जमीन
इन्हें सब माफ़ है
ये मेरा देश है ......
हम सब कुछ माफ कर सकते हैं ...
ReplyDeleteसामाजिक विषमताओं को अभिव्यक्त करता एक ज्वलंत चिंतन ....बधाई
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