मुझसे युद्ध करो मैं विजयी होना चाहता हूँ
न , न मुझे यूँ न छोड़ो
रणभूमि में
दया न करो मुझ पर
मौका दो मुझे
युद्ध का
तुम्हारी दया पर
जीना नही चाहता मैं
मुझसे युद्ध करो
मैं विजयी होना चाहता हूँ
या चाहता हूँ वीरगति
मैं दया की भीख नही चाहता
जीवनदान का कर्ज नही चाहता
न ही चाहता हूँ चुपचाप स्वीकार करूं
तुम्हारी श्रेष्ठता
आओ युद्ध करो मुझसे
मुझे पराजित करों .........
रणभूमि में
दया न करो मुझ पर
मौका दो मुझे
युद्ध का
तुम्हारी दया पर
जीना नही चाहता मैं
मुझसे युद्ध करो
मैं विजयी होना चाहता हूँ
या चाहता हूँ वीरगति
मैं दया की भीख नही चाहता
जीवनदान का कर्ज नही चाहता
न ही चाहता हूँ चुपचाप स्वीकार करूं
तुम्हारी श्रेष्ठता
आओ युद्ध करो मुझसे
मुझे पराजित करों .........
बहुत खूब ... जिजीविषा बनी रहनी जरूरी है ...
ReplyDeleteपौरुष तो उठने में ही है ...
लाजवाब रचना ..
बहुत -बहुत शुक्रिया दिगम्बर सर ....
Deletehamesha ki tarah, is baar bhi...ek behtreen prastuti!
ReplyDeleteswaabhimaan ka utkrisht udahran...!!
दिल से आभार आपका सुनिता जी ....
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