kitna sach, nahi maloom! magar sukoon mila dil ko ye panktiyan padhkar, mujhe bhi lagta hai Pitrsatta ko pusht karne ke liye hi, 'Seeta' k bahane Striyon k samaksh tyaag ke aadarsh paida kiye gaye hain, granthon-kathaon ke madhyam se.
क़ातिल ने कहा वह इंसाफ़ करेगा तुम्हें न्याय देगा क़ातिल जानता है शव न सुनता है न बोलता है मुर्दों को इंसाफ़ कहाँ मिलता है ! क़ातिल मुस्कुराता है वह देखता नहीं अपना चेहरा किसी आईने में |
गाँव में एक बहुत बड़ा तालाब था | उसमें तरह -तरह के जीव रहते थे . उस तालाब में एक बहुत बड़ा मेढक भी रहता था | बहुत ही बड़ा | पूरे तालाब में उसका आतंक था . बड़ी -बड़ी मछलियाँ भी अब उस मेढक से डरने लगी थी . कुछ समय पहले उस बड़े मेढक ने तालाब के जीवों को डराने के लिए अपनी टीम के साथ आतंक मचाया था | तब से उस तालाब में खौफ का मौहल है | किन्तु इस बीच कुछ जलीय जीवों ने यह तय किया कि वे डरकर नही सम्मान के साथ जियेंगे और अन्याय का विरोध करेंगे| तो तालाब में मुखिया के चुनाव के लिए चुनाव कराया गया | मेढक को पूरा विश्वास था कि सबसे ज्यादा जीव उसके समर्थन में मतदान करेंगे | ठीक उसी समय तालाब का सबसे बुजुर्ग कछुआ सामने आया और मेढक के विरुद्ध में खड़ा हो गया | तालाब चुनाव आयोग ने कहा अब निर्णय वजन के हिसाब से लिया जायेगा . मेढक खुश था कि उसके साथ मेढकों की पूरी टीम है और दूसरी तरफ अकेला कछुआ | तराजू मंगवाया गया एक तरफ कछुआ और दूसरी तरफ सभी मेढक | भार मापने के लिए तराजू को ऊपर उठाया गया . ठीक उसी समय किसी ने बाहर से पानी में कुछ चारा फेंका | सभी मेढक एक -एक कर तराजू से कूद गये ! कछुआ का पलड़ा भारी हो गया .
रंजना भाटिया दो दिन पहले नित्यानंद गायेन की किताब अपने हिस्से का प्रेम मिली ..रविवार का दिन उसी को पढ़ते हुए गया ..पढ़ते पढ़ते एक अजीब सा एहसास हुआ कि हिंदी कविता की कमांड अब युवा वर्ग के हाथ में महफूज है ....देश की फ़िक्र ,समाज की फ़िक्र ,और आज के समाज की वास्तविकता की तस्वीर है इस काव्य संग्रह में ..अपने पर्यावरण के प्रति लगाव और चिंता आपकी पहली दूसरी कविता में ही व्यक्त हो जाती है ..सीखना चाहता हूँ मित्रता /पालतू पशुओं से/क्यों कि वे स्वार्थ के लिए कभी धोखा नहीं देते |.कितना बड़ा सच है इन पंक्तियों में जो आज की राजनिति और आज के वक़्त को ब्यान करता है|हाथी सिर्फ आगे चित्रों में दिखेगा क्यों कि जंगल ही नहीं बचेंगे आने वाले वक़्त में ..डरा देता है यह मासूम सी कविता का सवाल ..और यह तो और भयवाह है कि बाजार से लायेंगे साँसे और हवा बिकेगी बाजार में ...आने वाले वक़्त की तस्वीर आँखों में डर पैदा कर देती है ..साथ ही यह एहसास भी करवाती है कि आज का युवा सजग है तो शायद कहीं कुछ हालात में सुधार संभव हैं .. समाज किसी भी युग का आईना होता है ..और उस पर लिखे जाना वाला साहित्य उसकी परछाई
sorry!!!!!!!!!!!but i really wish to read it, can u translate it into hindi or english.
ReplyDeleteस्वर्ण मृग
Deleteउसने कभी नही मांगी
स्वर्ण मृग
नही था कोई राम उसके साथ
धरती भी नही फटी थी
नही किया था किसी रावण ने उसका हरण
उसे तो जला कर मारा
उसके अपने लोगों ने..
WAAAAAAH!
ReplyDeletekitna sach, nahi maloom!
magar sukoon mila dil ko ye panktiyan padhkar, mujhe bhi lagta hai Pitrsatta ko pusht karne ke liye hi, 'Seeta' k bahane Striyon k samaksh tyaag ke aadarsh paida kiye gaye hain, granthon-kathaon ke madhyam se.