भाग्य की रेखाएं
मेहनती हाथों में नही दिखतीं भाग्य की रेखाएं इनमें बचपन से ही पड़ जाती हैं दरारें ये दरारें खुद ही लिखतीं हैं कहानी अपनी किस्मत की अक्सर ऐसे हाथ वालें लोगों की पीठ पर बरसती हैं लोकतांत्रिक देश की पुलिस की लाठियां छाती से टकरातीं हैं गोलियाँ | फिर भी कभी कम नही होती इन हाथों की संख्या दो गिरते हैं तो खड़े हो जाते हैं दस –दस हाथ मुल्क भी जानता है इस सत्य को कि टिका हुआ है उसका भाग्य और भविष्य इन्ही भाग्य –रेखा विहीन हाथों की मेहनत में उर्वर है उसकी जमीन इनके पसीने की धार से .....