रंजना भाटिया दो दिन पहले नित्यानंद गायेन की किताब अपने हिस्से का प्रेम मिली ..रविवार का दिन उसी को पढ़ते हुए गया ..पढ़ते पढ़ते एक अजीब सा एहसास हुआ कि हिंदी कविता की कमांड अब युवा वर्ग के हाथ में महफूज है ....देश की फ़िक्र ,समाज की फ़िक्र ,और आज के समाज की वास्तविकता की तस्वीर है इस काव्य संग्रह में ..अपने पर्यावरण के प्रति लगाव और चिंता आपकी पहली दूसरी कविता में ही व्यक्त हो जाती है ..सीखना चाहता हूँ मित्रता /पालतू पशुओं से/क्यों कि वे स्वार्थ के लिए कभी धोखा नहीं देते |.कितना बड़ा सच है इन पंक्तियों में जो आज की राजनिति और आज के वक़्त को ब्यान करता है|हाथी सिर्फ आगे चित्रों में दिखेगा क्यों कि जंगल ही नहीं बचेंगे आने वाले वक़्त में ..डरा देता है यह मासूम सी कविता का सवाल ..और यह तो और भयवाह है कि बाजार से लायेंगे साँसे और हवा बिकेगी बाजार में ...आने वाले वक़्त की तस्वीर आँखों में डर पैदा कर देती है ..साथ ही यह एहसास भी करवाती है कि आज का युवा सजग है तो शायद कहीं कुछ हालात में सुधार संभव हैं .. समाज किसी भी युग का आईना होता है ..और उस पर लिखे जाना वाला साहित्य उसकी परछाई
आपके जीवन में बारबार खुशियों का भानु उदय हो ।
ReplyDeleteनववर्ष 2011 बन्धुवर, ऐसा मंगलमय हो ।
very very happy NEW YEAR 2011
आपको नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें |
satguru-satykikhoj.blogspot.com
भावपूर्ण कविता....
ReplyDeleteThank u all
ReplyDeleteचाक्षुस बिम्ब......भवपूर्ण-प्रभवपूर्ण रचना...
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