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शिक्षा और "मौत का निवाला"

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बिहार जैसे गरीब प्रान्त में शिक्षा का विकास हो या न हो , मध्याह्न भोजन जैसे योजना के तहत गरीब बच्चों को भोजन मिलने की गारंटी अवश्य मिली है | लेकिन इस भोजन के पीछे का सच बहुत भयावह है | इस योजना ने शिक्षकों को बेईमान से लेकर हत्यारा तक बना दिया है | मसरख, छपरा का मध्याह्न भोजन "मौत का निवाला" बनकर एक काला अध्याय गढ़ चुका है | गाहे-बगाहे भोजन में छिपकली , जहर , कीड़े-मकोड़े मिलने की खबर आती ही रही है | अधिकाँश ख़बरों को दबा दिया जाता है | स्कूल प्रांगन में तैयार हो रहे भोजन ने शिक्षकों पर एक अतिरिक्त बोझ डाल दिया है | अधिकांश हेड मास्टरों के घर में सरकारी चावल की बोरियां मिल जायेगी | आजकल सर्तक होकर ये बोरियां बाजार में धरल्ले से बेचीं जाती है | भोजन की गुणवत्ता इसी बात से पता लगाईं जा सकती है कि आये दिन इन भोजन के कारण सैकड़ों बच्चे बीमार हो रहे हैं | इस योजना के तहत नीचे-से-ऊपर तक लूट खसोट मचा हुआ है | भूख से तिलमिलाए बच्चे बेबस होकर इस अखाद्य भोजन को खाने के लिए मजबूर हैं | पिछले दिनों एक कार्यक्रम के सिलसिले में अपने गाँव गया हुआ था | मित्र रजनीकांत पाठक जी के साथ ही आना-जान

दिन की मर्यादा रात ही तो है

अर्चना कुमारी की एक बहुत सुंदर कविता --------------------------------------------- नंगापन...... विचारों में हो या देह की चुभता है आँखों को जरुरत भर आवरण सलज्जता है मर्यादा की प्रेयसी के चन्द्रमुख पर धूएँ के छल्ले उड़ाना शोखी होती होगी माँ के सामने याद आती है पैकेट पर लिखी चेतावनी बड़ी कोशिश की जाती है कि शराब का भभका बच्चे न पहचाने कि बच्चे मान ले बुरी चीज है ये भी कि बना रहे अच्छे बुरे का फर्क रात-बिरात नींद की गहराईयों में चूमकर बन्द पलकें पुरुष हो जाता है मर्यादित पति बात-बेबात पर खुश होकर थमाना मोगरे के फूल अंजुरी में प्रेयसी के प्रेयस के आह्लाद का संयम है सरे-बाजार नाच लेना बारात की शोभा हो सकती है लेकिन इंसान की नहीं अनावरण को आधुनिकता कहते लोग थोड़े कच्चे हैं कि उद्दण्डता,उच्छृंखलता और स्वच्छन्दता से कहीं विशेष अर्थ है स्वतंत्रता का आधुनिक होते-होते जानवर होने से कहीं भला है कि तथ्य से भिज्ञ होकर तत्व का मान रख लें इंसान हो लें दिन की मर्यादा रात ही तो है और धरती का आसमान ॥ - अर्चना क