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Showing posts from November, 2012

ওরা পড়তে পারেনা ভাঙ্গা অক্ষর ....

কি যে লিখি  আমার লেখার তো নেই কোনো শেষ  আমি লিখব  থাকবে লেখা  সুধু জীবন হবে শেষ  আমার দেশে আমি হলাম পর ওরা সবাই জানে গল্প আমার মুখ দেখে পড়ে জীবন আমার আমার ভিতরে যে ভাঙ্গাচড়া ঘর তার দালানে পড়ে আছে আমার স্বপ্ন দেহ ওরা পড়তে পারেনা ভাঙ্গা অক্ষর .... -নিত্যানন্দ গায়েন

मैंने जीवन जलाकर रौशन किया तुम्हारे देवता का घर ....

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बहुत मंहगा है  दीये का तेल  और मेरे हाथ हैं खाली  मैंने जीवन जलाकर रौशन किया  तुम्हारे देवता का घर ....

खोजता हूँ कुछ और आग

तपते फागुन में  जैसे जलता है आरण्य  झरने लगता है  गल -गल के सूरज  तृष्णा में व्याकुल पृथ्वी  ठीक उसी तरह जलता है  एक आग कहीं  मेरे भीतर  हर मौसम  तब मैं पानी नही खोजता हूँ कुछ और आग ताकि जी भरकर जल जाऊं अपने गमों के साथ ...

कई बार झुलसा है

खामोश है शहर मेरा  सहमे हुए बच्चे की तरह  कई बार झुलसा है  दंगों की आग में  आजकल  जी रहा है  एक अपाहिज की तरह