सुखद यह है कि कल-आज कमी दर्ज किया है मैंने, मेरे लिए तुम्हारी बेचैनी में मैं मान ले रहा हूँ कि तुम्हें भी अब अहसास होने लगा है अपनी नादानियों का | .... मौसम ऐसे ही बदलता है .... तुम्हारा कवि ......
मिमिक्री मत करना कभी अब जेलों में अब भी जगह बहुत है पुलिस दुरुस्त हैं बस, बीमार है लोकतंत्र ! पुस्तक मेले में आके देखो बाबाओं के स्टाल पर दस रुपये की मोटी किताब है सेवक-सेविकाएँ एकदम चुस्त हैं बाउंसर सजग है बस लोकतंत्र बीमार है पता नहीं क्या बकता है ये साला गायेन पागल है ! - तुम्हारा कवि क्या लिखता है मत पढ़ो, सब कचरा है | उनका पढ़ो सब मौलिक, महान हैं |