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Showing posts from August, 2012

आओ मनाएं ईद हम लगाकर गले एक -दूजे को

आओ मनाएं ईद हम  लगा के गले  एक -दूजे को  दुआ ये करें इस ईद में  रो न दें चाँद  फिर न कर बैठें  हरकत कोई  कि, मिला न पाए आँख  एक -दूजे से .... आओ सजाएं हम मिलकर  अपने वतन के चमन को इस तरह से कि, उजड़ न पाए कोई ........... आओ मनाएं ईद हम लगाकर गले एक -दूजे को

तुम भी बेचैन हो शायद

हर बार खोलता हूँ द्वार  कि , हो जाये तुम्हारा दीदार  काले मेघों का जमघट  हटा नही अभी  तुम भी बेचैन हो शायद  ओ  चाँद ....

शामिल नही एक भी शहीद

इनके पास है  देश भक्तों की एक लम्बी सूची  शामिल   नही   एक भी  शहीद ये सभी ... जमीन ,इमारतें , नदी तालाब  को ही मानते हैं देश  इनके देश में नही रहते  हम -तुम जैसे  आम लोग ..

'युवराज ' देने की परम्परा रही है हमारी

मत करो हमारा विरोध  हमें सहो, सहते -सहते मरो  आखिर लोकतंत्र में  'युवराज ' देने की परम्परा रही है हमारी  अरे ...अक्ल के अंधे  धन कभी काला नही होता  यदि , होता  तेरे पास भी क्यों होता ...? सोचता हूँ तुम्हारे विरुद्ध हम भी खड़े कर दें कुछ बाबा जिनका नारा हो "उस बाबा को हटाओ , हमें बचाओ "| देखो , तुम भी खिलाड़ी और हम भी पर फर्क है हमारे अनुभवों में हम शुरू से हैं मैदान में तुम अभी उतरे हो तुम से पहले भी कुछ आये थे देने हमें चुनौती अपने दामन में लगे धब्बों को छुपाकर अब हमारे साथ हैं ... अच्छा होता यदि खेल पाते कुछ और अभ्यास मैच फाइनल से पहले ..

रंजना भाटिया जी द्वारा मेरी किताब की समीक्षा

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रंजना भाटिया  दो दिन पहले नित्‍यानंद गायेन की किताब अपने हिस्से का प्रेम मिली ..रविवार का दिन उसी को पढ़ते हुए गया ..पढ़ते पढ़ते एक अजीब सा एहसास हुआ कि हिंदी कविता की कमांड अब युवा वर्ग के हाथ में महफूज है ....देश की फ़िक्र ,समाज की फ़िक्र ,और आज के समाज की वास्तविकता की तस्वीर है इस काव्य संग्रह में ..अपने पर्यावरण के प्रति लगाव और चिंता आपकी पहली दूसरी कविता में ही व्यक्त हो जाती है ..सीखना चाहता हूँ मित्रता /पालतू पशुओं से/क्यों कि वे स्वार्थ के लिए कभी धोखा नहीं देते |.कितना बड़ा सच है इन पंक्तियों में जो आज की राजनिति और आज के वक़्त को ब्यान करता है|हाथी सिर्फ आगे चित्रों में दिखेगा क्यों कि जंगल ही नहीं बचेंगे आने वाले वक़्त में ..डरा देता है यह मासूम सी कविता का सवाल ..और यह तो और भयवाह है कि बाजार से लायेंगे साँसे और हवा बिकेगी बाजार में ...आने वाले वक़्त की तस्वीर आँखों में डर पैदा कर देती है ..साथ ही यह एहसास भी करवाती है कि आज का युवा सजग है तो शायद कहीं कुछ हालात में सुधार संभव हैं .. समाज किसी भी युग का आईना होता है ..और उस पर लिखे जाना वाला साहित्य उसकी परछाई