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Showing posts from September, 2013

भाग्य की रेखाएं

मेहनती हाथों में नही दिखतीं भाग्य की रेखाएं इनमें बचपन से ही पड़ जाती हैं दरारें ये दरारें खुद ही लिखतीं हैं कहानी अपनी किस्मत की अक्सर ऐसे हाथ वालें लोगों की पीठ पर बरसती हैं लोकतांत्रिक देश की पुलिस की लाठियां छाती से टकरातीं हैं गोलियाँ | फिर भी कभी कम नही होती   इन हाथों की संख्या दो गिरते हैं तो खड़े हो जाते हैं दस –दस हाथ मुल्क भी जानता है इस सत्य को कि टिका हुआ है उसका भाग्य और भविष्य इन्ही भाग्य –रेखा विहीन हाथों की मेहनत में उर्वर है उसकी जमीन इनके पसीने की धार से .....

सत्ता के लिए शतरंज चल रहा है

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भूखे का पेट जल रहा है  दंगों की आग में देखो  मुल्क जल रहा है  ऐसे ही नेताजी का घर चल रहा है  उसका विरोध हो रहा है  इनका समर्थन हो रहा है  सत्ता के लिए शतरंज चल रहा है  मंहगाई बढ़ रही है  इसे रोकने के लिए आयात हो रहा है निर्यात हो रहा है बस , आदमी बिक रहा है आदमी बेच रहा है क्रोध से मेरा तन -मन जल रहा है किसी तरह मेरा देश चल रहा है ..... चित्र -गूगल से साभार 

वो पुराना मिटटी का घर

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আমার গ্রামের সেই পুরনো মাটির ঘর আজ ও দাড়িয়ে আছে ওই ঘরের দেয়ালে লুকিয়ে আছে অনেক -অনেক স্মৃতি আমাদের বংশের পুরনো ইতিহাস টিকটিকি , মাকসা আরও অনেক জীব প্রতিদিন পড়ে আমাদের সেই ইতিহাস এই ঘর করেছে ভোগ অনেক ঝড় -বৃষ্টি তবুও পড়েনি ভেঙ্গে আজ ও দাড়িয়ে আছে স্মৃতির বল নিয়ে এক যোদ্ধার মত ওই বৃদ্ধ ঘর জানে পড়ে গেলে ভেঙ্গে যাবে সুখ - দু:খ, কান্না -হাসির সব গল্প তাই সে দাড়িয়ে আছে আজ ও কোনো বৃধ্য পর্বতের মত উঠুনের গাছেরা তাকে বাতাস করে বৃষ্টি দেয় জল তাপ দেয় রোদ পাখিরা সোনায় গান জ্যোত্স্না দেয় নতুন স্বপ্ন। ........ -নিত্যানন্দ গায়েন (हिंदी अनुवाद-अनुवादक :- सरोज सिंह) मेरे गाँव का वो पुराना मिटटी का घर आज भी खड़ा है उस घर की दीवारों पर छिपी हुई है अनेकोअनेक स्मृतियाँ और हमारे वंश का पुराना इतिहास छिपकली,मकड़ी,और भी अनेक जीव पढ़ते हैं रोज हमारा वही इतिहास ये घर कई मुश्किलों से गुज़रा है अंधड़- वर्षा तब भी ढहा नहीं आज भी वो खड़ा है स्मृतियों के बल पर एक योद्धा की तरह !! वो बूढ़ा घर जानता है उसके गिरते ही ढह जायेगा सुख-दुःख, रोना-हँसना ,सारी बातें इसलिए वो आज भी खड़ा है किसी

इन्हें मालूम है तस्वीरें बोला नही करती ..

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बापू ..तुम्हें  राज घाट पर आज उन्होंने दी पुष्पांजलि बड़ी देर बाद उन्हें तुम याद आये जब भी हुआ खतरा उनकी कुर्सी पर लगा कर तस्वीर तुम्हरी  सभाएं की उन्होंने  सत्ता के लिए गांधीवादी घोषित किया खुद को | तुम्हारी एक तस्वीर इन सभी ने लगा रखी है अपने -अपने कार्यालयों में ठीक अपनी कुर्सी के पीछे  वहीं बैठ कर सरेआम वे करते हैं  चोरियाँ, लेते हैं घूस  समझ नही पाये वे  आपकी मुस्कान के पीछे छिपी वेदना को | इन्हें मालूम है तस्वीरें बोला नही करती ..