दिन की मर्यादा रात ही तो है
अर्चना कुमारी की एक बहुत सुंदर कविता --------------------------------------------- नंगापन...... विचारों में हो या देह की चुभता है आँखों को जरुरत भर आवरण सलज्जता है मर्यादा की प्रेयसी के चन्द्रमुख पर धूएँ के छल्ले उड़ाना शोखी होती होगी माँ के सामने याद आती है पैकेट पर लिखी चेतावनी बड़ी कोशिश की जाती है कि शराब का भभका बच्चे न पहचाने कि बच्चे मान ले बुरी चीज है ये भी कि बना रहे अच्छे बुरे का फर्क रात-बिरात नींद की गहराईयों में चूमकर बन्द पलकें पुरुष हो जाता है मर्यादित पति बात-बेबात पर खुश होकर थमाना मोगरे के फूल अंजुरी में प्रेयसी के प्रेयस के आह्लाद का संयम है सरे-बाजार नाच लेना बारात की शोभा हो सकती है लेकिन इंसान की नहीं अनावरण को आधुनिकता कहते लोग थोड़े कच्चे हैं कि उद्दण्डता,उच्छृंखलता और स्वच्छन्दता से कहीं विशेष अर्थ है स्वतंत्रता का आधुनिक होते-होते जानवर होने से कहीं भला है कि तथ्य से भिज्ञ होकर तत्व का मान रख लें इंसान हो लें दिन की मर्यादा रात ही तो है और धरती का आसमान ॥ - अर्चना क...
संवेदनशील पंक्तियाँ....
ReplyDeleteबहुत आभार ...आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं बाल दिवस की .
ReplyDeletevastavikta ka sahaj abhivyakti-sundar
ReplyDeleteमेरी नई रचना ; हम बच्चे भारत के " http://kpk-vichar.blogspot.in
बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत आभार
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