सजदा, कुछ इस तरह से
करो धरती पर सजदा, कुछ इस तरह से कि , गूंजे आसमां... और उतर आये मसीहा जमीं पर पूछने तुम्हारी ख्वाइश वैसे तो मालूम है आता नही कोई अपना भी पूछने एक बूँद पानी के लिए बस गिनते हैं हर साँस को अंत के लिए फिर भी बडो का कहा याद है बड़ी शक्ति है दुआयों में तुम्हे आश्वस्त कर देना चाहता हूँ मैं नही चाहता कुछ भी बस हट जाये ये उदासी के बादल और मिल जाये बिछड़े हुए लोग उस असहाय अंधी बूढी माँ का बेटा ....
संवेदनशील पंक्तियाँ....
ReplyDeleteबहुत आभार ...आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं बाल दिवस की .
ReplyDeletevastavikta ka sahaj abhivyakti-sundar
ReplyDeleteमेरी नई रचना ; हम बच्चे भारत के " http://kpk-vichar.blogspot.in
बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत आभार
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