खोजता हूँ कुछ और आग

तपते फागुन में 
जैसे जलता है आरण्य 
झरने लगता है 
गल -गल के सूरज 
तृष्णा में व्याकुल पृथ्वी 

ठीक उसी तरह जलता है 
एक आग कहीं 
मेरे भीतर 
हर मौसम 

तब मैं पानी नही
खोजता हूँ कुछ और आग
ताकि जी भरकर जल जाऊं
अपने गमों के साथ ...

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