शिक्षा और "मौत का निवाला"


बिहार जैसे गरीब प्रान्त में शिक्षा का विकास हो या न हो , मध्याह्न भोजन जैसे योजना के तहत गरीब बच्चों को भोजन मिलने की गारंटी अवश्य मिली है | लेकिन इस भोजन के पीछे का सच बहुत भयावह है | इस योजना ने शिक्षकों को बेईमान से लेकर हत्यारा तक बना दिया है | मसरख, छपरा का मध्याह्न भोजन "मौत का निवाला" बनकर एक काला अध्याय गढ़ चुका है | गाहे-बगाहे भोजन में छिपकली , जहर , कीड़े-मकोड़े मिलने की खबर आती ही रही है | अधिकाँश ख़बरों को दबा दिया जाता है | स्कूल प्रांगन में तैयार हो रहे भोजन ने शिक्षकों पर एक अतिरिक्त बोझ डाल दिया है | अधिकांश हेड मास्टरों के घर में सरकारी चावल की बोरियां मिल जायेगी | आजकल सर्तक होकर ये बोरियां बाजार में धरल्ले से बेचीं जाती है | भोजन की गुणवत्ता इसी बात से पता लगाईं जा सकती है कि आये दिन इन भोजन के कारण सैकड़ों बच्चे बीमार हो रहे हैं | इस योजना के तहत नीचे-से-ऊपर तक लूट खसोट मचा हुआ है | भूख से तिलमिलाए बच्चे बेबस होकर इस अखाद्य भोजन को खाने के लिए मजबूर हैं |
पिछले दिनों एक कार्यक्रम के सिलसिले में अपने गाँव गया हुआ था | मित्र रजनीकांत पाठक जी के साथ ही आना-जाना हुआ और लगभग चार-पांच घंटे के सफ़र में उनसे लम्बी बातचीत भी हुई | रजनीकांत पाठक जी एकता शक्ति फाउंडेशन नाम के एक NGO के उपाध्यक्ष हैं | हाल के दिनों में NGO के प्रति मेरा विश्वास उठ गया था लेकिन रजनीकांत जी के साथ बिताये दो दिन और उनके NGO के कार्य-प्रणाली को देखकर अभिभूत हो गया | फिलहाल बिहार के कुछ जिलों में उनका NGO मध्याह्न भोजन मुहैय्या करा रहा है |
एकता शक्ति फाउंडेशन ने इस योजना को दिल्ली से शुरुआत की | वर्ष २००३ से लेकर अभी तक ये संस्था और भी कई राज्यों में इस योजना के तहत मध्याह्न भोजन मुहैय्या करवा रही है | उन्नत तकनीक और ख़ास प्रकार से बनाए गए गुणवत्ता-पूर्ण भोजन को हर स्कूल तक पहुंचाने के लिए इनकी जो कार्य-पद्धति है वो काबिले-तारीफ़ है | सरकारी चावल, दाल और चने को कई स्तर पर सफाई की जाती है | प्रसिद्द ब्रांड का तेल उपयोग में लिया जाता है | कार्य-स्थल को स्वच्छ रखने के लिए कई-कई कर्मचारी लगे रहते हैं | तैयार हो रहे भोजन के चारो तरफ नेट लगाया गया है ताकि छिपकली या कीड़े-मकोड़े न गिर जाए |
गरीब बच्चों के निवाले में व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए जहर खिलाने जैसा जोखिम 98 फीसदी है जबकि ऐसे उन्नत और गुणवत्तापूर्ण पद्धति से खाना सिर्फ 2 फीसदी तक ही पहुँच रही है | शिक्षक पढ़ाई से ज्यादा खाना बनाने और अनाज जुटाने में मशगूल हैं | इस देश में गरीब बच्चों की पढ़ाई ख़ाक होगी , उन्हें भी भूख ज्यादा ज़रूरी लगती है और अपने शिक्षकों को खाना बनने में लिप्त देखकर उन्हें भी लगता है शिक्षक उन्हें सबसे ज़रूरी चीजों का मुहैय्या करवा रहे हैं |
ये तस्वीरें एकता शक्ति फाउंडेशन के वर्कशॉप से ली गई है ..

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प्रशांत विप्लवी जी के फेसबुक वाल से साभार 

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