नफरतों से पैदा नहीं होगा इन्किलाब लेना-देना नहीं कुछ नफरत का किसी इन्कलाब से नफरत की कोख से कोई इन्कलाब होगा नहीं पैदा मेरे दोस्त ताने, व्यंग्य, लानतें और गालियाँ पत्थर, खंज़र, गोला-बारूद या कत्लो-गारत यही तो हैं फसलें नफरत की खेती की... तुम सोचते हो कि नफरत के कारोबार से जो भीड़ इकट्ठी हो रही है इससे होगी कभी प्रेम की बरसा ? बार-बार लुटकर भी खुश रह सके ये ताकत रहती है प्रेम के हिस्से में नफरत तो तोडती है दिल लूटती है अमन-चैन अवाम का... प्रेम जिसकी दरकार सभी को है इस प्रेम-विरोधी समय में इस अमन-विरोधी समय में इस अपमानजनक समय में नफरत की बातें करके जनांदोलन खड़ा करने का दिवा-स्वप्न देखने वालों को सिर्फ आगाह ही कर सकता है कवि कि कविता जोड़ती है दिलों को और नफरत तोड़ती है रिश्तों के अनुबंध नफरत से भड़कती है बदले की आग इस आग में सब कुछ जल जाना है फिर प्रेम और अमन के पंछी उड़ नहीं पायेंगे नफरत की लपटों और धुंए में कभी भी ये हमारा रास्ता हो नहीं सकता मुद्दतों की पीड़ा सहने की विरासत अपमान, तिरस्कार और मृत्यु की विरासत हमारी ताकत बन सकती है दोस्त इस ताकत के बल पर हम बदल देंगे दृश्य ए...
आपके जीवन में बारबार खुशियों का भानु उदय हो ।
ReplyDeleteनववर्ष 2011 बन्धुवर, ऐसा मंगलमय हो ।
very very happy NEW YEAR 2011
आपको नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें |
satguru-satykikhoj.blogspot.com
भावपूर्ण कविता....
ReplyDeleteThank u all
ReplyDeleteचाक्षुस बिम्ब......भवपूर्ण-प्रभवपूर्ण रचना...
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