पेड़ के पत्ते जब कांपते हैं

प्रभातकाल की सूर्य किरण
मध्यम -मध्यम शीतल पवन
पक्षियों का मधुर स्वर
मुझे जगाता है

पूनम की रात में
आकाश का श्रृंगार करती है
चन्द्रमा
मैं देर पहर तक जगकर देखता हूँ उसे
पेड़ के पत्ते जब कांपते हैं
चांदनी की स्पर्श से
मुझे याद आता है
तुम्हारा कांपता शरीर


अचानक ,
उठता है एक भूचाल
सागर के तल में
सुनामी बनकर आता है
और ले जाता है बहाकर सबकुछ
तब अहसास होता है
सहने की भी होती है एक सीमा .....

Comments

  1. prakriti ki har-ek kriti, me khud ko khoj raha maanav.........!, aur saath me aapki banayi ye painting............marvelous! aaj aap k darshan ek chitrkaar ke roop me bhi hue!!

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    1. बहुत -बहुत शुक्रिया आपका ...आपकी प्रतिक्रिया पाकर खुशी होती है ...लेखन सही दिशा में जा रहा है इसका भरोसा होता है . सादर

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  2. बहुत खूब .... दिल ऐसे कितने ही सुनामियों को झेल लेता है प्रेम में ...
    खूबसूरत पेंटिंग है ... शंडों का एहसास समेटे ...

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    Replies
    1. शुक्रिया दिगम्बर सर ...

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