आंसुओं का सैलाब है

खोये हुए लोग 
अभी घर नही पहुंचे 
उनकी चिंता है 
कि मंदिर में 
पूजा कब शुरू हो 

अपनों से बिछड़े हुए 
लोगों की आँखों में 
आंसुओं का सैलाब है
वे खुश हैं कि
मंदिर सही -सलामत खड़ा है

उजड़ गये सैकड़ों परिवार
और वे
खरीद रहे हैं
दीये का तेल

माँ के दूध के लिए
तड़प रही है बच्ची
और वे कर रहे हैं
टीवी पर बहस

प्रलय से अधिक
हम पर व्यवस्था भारी है
हम लाचार -असहाय हैं आज भी
पहले की तरह ....?

Comments

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिये ओम बना और उनकी बुलेट से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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