यह कब हुए किसी के ?

सफेद पोशाक का चोला ओड़ कर

शैतान घुमे हैं आंगन में

अशुर भी आज शर्मसार है

इन्सान की ऐसी हरकतों से

जिधर देखो लहू के प्यासे

...लम्बी तिलक

लम्बी दाड़ी

सिर पर टोपी और

कुछ अस्त्रधारी

बेरोजगार सब घुमने वाले

पड़ गए हैं इनके पाले

कौन जाने इनके मन के जाले

न राम जाने न रहीम जाने

किसी का कहना कभी न माने

अब क्या हो ऊपरवाला जाने

सावधान रहना इनसे

मुंह मत लगना इनके

यह कब हुए किसी के ?

Comments

  1. thanks. keep writting and keep reading..bcoz if u want to be a good writer then you have to be a good reader as well..:)all the best..

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

तालाब में चुनाव (लघुकथा)

मुर्दों को इंसाफ़ कहाँ मिलता है

रंजना भाटिया जी द्वारा मेरी किताब की समीक्षा