मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि

मेरी ऐसी औकात कहाँ
कि मैं बनायुं मंदिर तुम्हारा
मुझमे ऐसी ताकत कहाँ कि
मैं तोडू मस्जिद
मैं भक्त गरीब तुम्हारा
मैं बंदा फकीर तुम्हारा
अपना घर मैं अब तक बना न पाया
कैसे जलाऊँ बस्ती
भूख की आग पेट में जल रही
मैं कैसे करूं मस्ती ?
तुम्हारे मंदिर - मस्जिद
पर मैं कुछ कहूं
मेरी कहाँ है ऐसी हस्ती ?
छोड़ दिया है
यह काम उनपर
जिनके लिए है मानव जीवन सस्ती
जो आपने सोचा न था
कर  रहे हैं बन्दे
इतनी मुझमें हिम्मत कहाँ
कि कह दूं इन्हें मैं गंदे
यदि कहीं है
अस्तित्व तुम्हारा
मेरे लिए समान है
कैसे तुमने यह होने दिया
जब तुम्हारे हातों में कमान हैं ?
कबीर को अब कहाँ से लाऊं
रहीम को मैं कैसे बुलाऊँ
नानक को यह भूल गये हैं
साधु- मौलबी बन गए हैं
कैसे इन्हें मैं समझाऊँ ?
तुम्हारे और इनके बीच अब
बढ गए हैं फासले
इसीलिए
बढ गए हैं इनके नापाक हौसले .

Comments

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  2. आप बहुत अच्छा लिखते हो.

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